मान लीजिए की आपके पास एक ऑफ डी (FD) है और आपको पैसों की ज़रुरत है। कितने समय में आप इस निवेश को पैसों में बदल पाएंगी। इस जोखिम को लिक्विडिटी जोखिम भी कहते हैं। इसके ज़्यादा होने से आपको अपने निवेश को पैसों में बदलने में ज़्यादा देरी होगी।
शेयर बाजार छोटे अंतरालों के भीतर ऊपर और नीचे जाता है। ऐसे में आप अपने आर्थिक लक्ष्यों को पाने में चूक सकती हैं या आपको नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है।
मान लीजिए की आपने किसी कंपनी को बांड के रूप में क़र्ज़ दिया है। ऐसे में यह मुमकिन है की शायद वह कंपनी आपको आपके पैसे न लौटा पाए। इसे डिफ़ॉल्ट जोखिम कहते हैं।
मान लीजिए की आपने 8% ब्याज दर पर ऑफ डी (FD) में निवेश किया है। अब, ब्याज दर के कम होने पर, जब आपको फिर से वही निवेश करना होगा तो आपको उसपर कम ब्याज मिलेगा।
यदि आप अधिक रिटर्न की उम्मीद करते हैं, तो आपको इनमें से अधिक जोखिम लेने पड़ सकते हैं। जोखिम का प्रकार चुने हुए निवेश उत्पाद पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए, यदि आपने ऋण या बांड में निवेश किया है, तो आपको अधिक तरलता और ब्याज दर जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। या, इक्विटी निवेश के मामले में, आपको बाज़ार का अधिक जोखिम उठाना पड़ सकता है।
कई निवेशों में उन्हें पैसों में ना बदल पाने का जोखिम होता है। ऐसे में आप कम अंतराल के अंदर उन्हें पैसों में नहीं बदल पाएंगी।
आप जितने बड़े होते जाते हैं या सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ते हैं, आपकी जोखिम लेने की क्षमता उतनी ही कम होती जाती है।
यदि आप अधिक रिटर्न की उम्मीद करते हैं, तो आपको इनमें से अधिक जोखिम लेने पड़ सकते हैं। जोखिम का प्रकार चुने हुए निवेश उत्पाद पर निर्भर करता है।