बधाई हो" - एक मार्गदर्शिक के आखिरी अध्याय का अंत
यह निवेश में इस्तेमाल होने वाले शब्दजाल के बारे में था
तक है…
अलविदा!
यह निवेश के प्रकारों को कहा जाता है। इन साधनों में शेयर बाजार निवेश, बॉन्ड, म्यूच्यूअल फण्ड, फिक्स्ड डिपाजिट, इत्यादि साधन शामिल हैं। इसे अंग्रेजी में इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स भी कहते हैं।
हर निवेशक को निवेश में जोखिम उठाना पड़ता है। इसे अंग्रेजी में रिस्क एपीटिट कहते हैं। यह जोखिम, अपनी निवेश राशि को पूरी तरह या उसके कुछ हिस्से को खो देने का होता है। आपकी निवेश जोखिम क्षमता, आपकी उम्र, निवास स्थान, आमदनी, रोज़गार, परिवार में आपकी आमदनी पर आश्रित सदस्यों, जैसी चीज़ों पर निर्भर करता है।
आपकी निवेश जोखिम क्षमता, आपकी उम्र के साथ घटती जाती है। इसका यह मतलब होता है, की आप जितना बुढ़ापे के करीब जाती हैं, उतना ही आपको निवेशों में परहेज़ करना पड़ता है।
जिनकी आप मालकिन बन सकती हैं, उन आर्थिक सम्पत्तियों को एसेट कहते हैं। इन सम्पत्तियों की कीमतों के बढ़ने और घटने से आपको मुनाफा और नुक्सान हो सकता है। एसेट के कई प्रकार होते हैं। उदाहरण – स्वर्ण, शेयर, डेब्ट, रियल इस्टेट प्रॉपर्टी इत्यादि।
इन्हे शेयर या स्टॉक भी कहते हैं। इनमे आप शेयर बाजार द्वारा निवेश कर सकती हैं। यह, एक कंपनी की मालिकियत का हिस्सा दर्शाती है। तो, शेयर खरीदकर आप, एक कंपनी की कुछ प्रतिशत की मालकिन बन सकती हैं।
जैसे आपको कुछ खरीदने के लिए पैसों की कमी होने पर क़र्ज़ की ज़रुरत पड़ती है, उसी तरह कंपनियों और सरकार को भी अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए क़र्ज़ लेना पड़ता है। वह तरीका, जिससे एक कंपनी, जनता के पास से क़र्ज़ मांगती है, उसे बॉन्ड इशू करना कहते हैं किसी भी बॉन्ड में निवेश करने पर आप उस कंपनी को क़र्ज़ देने में शामिल होती हैं।
म्यूच्यूअल फण्ड, कई सम्पत्तियों यानि एसेट की टोकरी को कहते हैं। यह निवेश साधन, विभिन्न प्रकार के एसेट्स की टोकरी में एक साथ निवेश करते हैं। इस निवेश के लिए वे कई लोगों के पास से निवेश जुटाते हैं। इनकी हर योजना का अलग निवेश जोखिम और लाभ क्षमता होती है।
हर म्यूच्यूअल फण्ड के एक निवेश जोखिम होता है। या जोखिम, वे जिन सम्पत्तियों में निवेश करते हैं उसपर निर्भर करता है। इस जोखिम का निवेशकों को सही सही हिसाब देना, म्यूच्यूअल फण्ड कंपनियों की ज़िम्मेदारी होती है।
रिसकॉमेटेर, इन निवेश जोखिमों को 5 श्रेणियों में बांटता है। यह हैं, कम जोखिम (लो रिस्क), थोड़ा कम जोखिम (मोडरेटली लो रिस्क), मध्यम जोखिम (मीडियम रिस्क), थोड़ा ज़्यादा जोखिम (मोडरेटली हाई रिस्क) और बहुत ज़्यादा निवेश जोखिम (हाई रिस्क)।
ज़्यादातर, शेयर में निवेश करने वाले म्यूच्यूअल फण्ड का निवेश जोखिम, डेब्ट में निवेश करने वाले म्यूच्यूअल फण्ड से ज़्यादा होता है।
शेयर खरीदने और बेचने की जगह को शेयर बाजार कहते हैं। सारे शेयर जिन्हे खरीदा और बेचा जा सकता है, वह शेयर बाजार की सूची में होते हैं। लोकप्रिय शेयर बाजार हैं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई)।
हर शेयर बाजार में, वहाँ बेचे और खरीदे जाने वाले शेयर की सूची होती है। इस सूची में किसी कंपनी के नाम के पहली बार शामिल किए जाने को लिस्टिंग कहते हैं। इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए कंपनियों को आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) जारी करनी पड़ती है।
किसी भी कंपनी के शेयर के पहली बार शेयर बाजार की सूची में शामिल किए जाने को लिस्टिंग कहते हैं। इसके लिए कंपनी को अपने शेयर का आईपीओ निकालना पड़ता है। आईपीओ निकालने के पहले, कोई भी शेयर बाजार में आम निवेशकों द्वारा खरीदा या बेचा नहीं जा सकता है।
जिस खाते में आपके शेयर डिजिटल रूप में रखे जाते हैं उसे डीमैट खाता कहते हैं। डीमैट खाते के बिना, आप किसी भी शेयर को खरीद नहीं सकती हैं।
इंडेक्स यानि सूची। तो, जो सूची, ज़्यादा से कम के क्रम में बाजार मूल्य के अनुसार कंपनियों को लगाती है उसे बेंचमार्क इंडेक्स कहते हैं। इस इंडेक्स में, सारे क्षेत्रों में से सबसे बड़ी कंपनियां ही होती हैं। इन्ही कंपनियों के शेयर मूल्य के चढ़ने और घटने से बाजार की दिशा तय होती है।
आपकी असल निवेश राशि जिसे आपने निवेश में डाला है, उसे प्रिंसिपल कहते हैं। जब भी, बाजार भाव, आपके प्रिंसिपल भाव से ऊपर जाता है, तो आपको मुनाफा होता है। इसी तरह, जब भी यह भाव बाजार भाव के नीचे जाता है, आपको घाटा होता है।
किसी भी निवेश में अगर एक तय समय तक आपको पैसे उसमे फसाकर रखने पड़ें तो उस निवेश काल को मैच्यॉरिटी पीरियड कहते हैं। जिस तारीख तक आपका पैसा किसी निवेश में फसा रहता है उसे अंग्रेजी में मैच्यॉरिटी डेट कहते हैं। कई निवेशों में इस तारीख से पहले निवेश को तोड़ने पर दंड राशि यानि पेनल्टी देनी पड़ती है।
जब आप किसी बॉन्ड में या डेब्ट निवेश में पैसे डालती हैं, आपको एक ब्याज दर के अनुसार मुनाफा मिलता है। इस ब्याज दर को कूपन या कूपन रेट कहते हैं।
बॉन्ड या डेब्ट निवेश पर जो ब्याज राशि मिलती है उसे अंग्रेजी में यील्ड कहते हैं। उदाहरण – मान लीजिए की आपने ₹100 का निवेश एक डेब्ट निवेश साधन में किया है। इसकी ब्याज दर (कूपन) 10% है। तो, इस निवेश से आपको ₹100 का 10% यानि, ₹10 का निवेश लाभ मिलेगा। इस ₹10 के निवेश लाभ को यील्ड कहते हैं।
मान लीजिये आपने निवेश किया → उसपर आपको ब्याज मिला → जो निवेश के साथ ही जुड़ गया → अब उस निवेश और जुड़े हुए ब्याज पर आपको और ब्याज मिलेगा।
इस ब्याज पर ब्याज मिलने की क्रिया को कम्पाउंडिंग कहते हैं।
मान लीजिए की आपके पास एक मुर्गी है। अब वह मुर्गी अंडे दे रही है।
तो यह मुर्गी हुई आपका निवेश।
अब, उन अण्डों में से चूज़े निकले हैं। यह चूज़े हुए आपका ब्याज (यानी निवेश से हुआ आपका मुनाफा।)
तो, यह चूज़े भी बड़े होकर अंडे देंगे, जिसमे से और चूज़े बनेंगे। अब, यह हुआ ब्याज पर मिलने वाला ब्याज। (यानी मुनाफे पर मिलने वाला मुनाफा)
आपके पैसे, जितने समय तक निवेश में रहते हैं, उस निवेश काल को अंग्रेजी में टेन्योर कहते हैं। इसी तरह, आपके आर्थिक लक्ष्यों को निवेशों द्वारा पाने में लगने वाले समय को भी टेन्योर कहते हैं। यह, दिनों, महीनो या सालों में नापा जा सकता है।
महंगाई को अंग्रेजी में इन्फ्लेशन कहते हैं। महंगाई के कारण, रोज़ाना चीज़ें और आर्थिक लक्ष्यों के दाम बढ़ जाते हैं। जैसे ब्याज को एक दर (%) के रूप में तोला जाता है, उसी तरह महंगाई को भी दर (%) के रूप में तोला जाता है। अगर महंगाई दर अधिक है, तो इसका मतलब है की कम समय में बहुत जल्दी चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं। इसी तरह, अगर महंगाई दर कम है, तो इसका मतलब है की महंगाई कम समय में बहुत धीरे बढ़ रही है। महंगाई दर का घटना, मतलब चीज़ों के दाम बढ़ने की गति का धीमा होना होता है।
डिफ्लेशन, महंगाई की विपरीत स्थिति को कहते हैं। डिफ्लेशन होने पर चीज़ों के दाम घटते जाते हैं। डिफ्लेशन दर ज़्यादा है तो दाम, कम समय में जल्दी घाट रहे हैं। डिफ्लेशन दर काम है, यानि दाम, कम समय में धीरे धीरे बढ़ रहे हैं।
यह निवेश में इस्तेमाल होने वाले शब्दजाल के बारे में था
तक है…
अलविदा!