ब्याज किसे कहते हैं?

ब्याज दर प्रतिशत में लिखी जाती है। यह आपके क़र्ज़ का वह प्रतिशत है जो आपको क़र्ज़ की रकम के अलावा लौटाना पड़ता है। चाहे आप कहीं से क़र्ज़ लें आपको ब्याज तो भरना ही पड़ता है।

ब्याज के 4 प्रकार होते हैं।

फ्लैट ब्याज दर

फ्लैट ब्याज दर

क़र्ज़ की अवधि के दौरान ब्याज % (प्रतिशत) या राशि समान रहती है।यह समय के साथ नहीं बढ़ती और न ही घटती है।

बढ़ती ब्याज दर

बढ़ती ब्याज दर

यहां क़र्ज़ की अवधि पूरी होने के बाद उसे चुकाने में जितनी देर लगती है, ब्याज और रकम की दर बढ़ जाती है।

घटती ब्याज दर

घटती ब्याज दर

ब्याज राशि हर बार कम हो जाती है जब हम क़र्ज़ का एक हिस्सा चुकाते हैं। यह होता है क्योंकि ब्याज का हिसाब चुकाने के लिए बची हुई राशि पर किया जाता है।

कंपाउंड ब्याज दर

कंपाउंड ब्याज दर

से ब्याज रकम पर मिलने वाला ब्याज भी कहते हैं। यहां मूल राशि को वर्ष के अंत में ब्याज दर से गुणा (x) किया जाता है। गुणा करके मिला हुआ परिणाम भुगतान आपकी राशि बन जाता है।जब तक पूरी राशि का भुगतान नहीं हो जाता तब तक यह  गुणा करने की क्रिया चलती रहती है।

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    इससे हमें यह सीख मिलती है।

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    क़र्ज़ लेने से पहले अलग अलग प्रकार के क़र्ज़ और अलग अलग ब्याज दरों की तुलना कर लेनी चाहिए।

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    किसी भी क़र्ज़ में हर बैंक एक सी ब्याज दर नहीं रखते हैं।

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    बाकी सारी शर्तें एक होते हुए आपको वही बैंक चुनना फायदेमंद हो सकता है जो सबसे कम ब्याज दर पर आपको क़र्ज़ दे।

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