ब्याज दर प्रतिशत में लिखी जाती है। यह आपके क़र्ज़ का वह प्रतिशत है जो आपको क़र्ज़ की रकम के अलावा लौटाना पड़ता है। चाहे आप कहीं से क़र्ज़ लें आपको ब्याज तो भरना ही पड़ता है।
क़र्ज़ की अवधि के दौरान ब्याज % (प्रतिशत) या राशि समान रहती है।यह समय के साथ नहीं बढ़ती और न ही घटती है।
यहां क़र्ज़ की अवधि पूरी होने के बाद उसे चुकाने में जितनी देर लगती है, ब्याज और रकम की दर बढ़ जाती है।
ब्याज राशि हर बार कम हो जाती है जब हम क़र्ज़ का एक हिस्सा चुकाते हैं। यह होता है क्योंकि ब्याज का हिसाब चुकाने के लिए बची हुई राशि पर किया जाता है।